मौत ने जान जो लौटायी थी उसे बेजान देखकर,
कुछ शर्मसार हुई इंसानियत उसके दाग देखकर,
बहुत चीखी चिल्लाई थी वो,
शायद दर्द बयां करने आई थी वो,
थोड़ी सी तकलीफ ज़माने ने भी उठाई थी,
नींदें किसी मोमबत्ती के रौशनी में बितायी थी,
कुछ ऐसी ही सोच की दरकार देखकर,
बदले की आग में यूँ मोहब्बत के ख्वाब सेंक कर,
उसने इश्क़ ज़ाहिर किया मुह पे तेज़ाब फेंक कर...
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