हम क्यों अपना कल बदलना चाहते हैं ?
क्यों अपने आने वाले कल से घबराते हैं ?
क्यों अपने सवालों के जवाब दूसरो से सुनना चाहते हैं ?
क्यों खुद से छुप कर लोगो की तलाश में निकल जाते हैं ?
इस 'क्यों' को कब तक साथ लेकर चलेंगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक उसी अंधकार में रहेंगे हम ?
हमें छोड़ कर जाना फैसला था उनका ,
क्यों उनके यादों में जीना बन गई हमारी मज़बूरी ?
सब कुछ ठीक सा था ,
फिर क्यों बना ली हमने सबसे दूरी ?
दूसरो के सपने पूरे करते करते खुद की नींद कुचल दी हमने ।
महान बनने की चाहत में खुद से नफ़रत कर ली हमने ।
क्यों किसी से मिलते ही उनसे अलग होने का सोचते है हम ?
क्यों खुद को खत्म होते देख दूसरो को जोड़ते है हम ?
कब तक इस 'क्यों' के बीच छुपे रहेंगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक आंखें बन्द रखेंगे हम ?
खुद को धोखे में रख उसका विश्वास जीत लिया हमने ।
उसके खुशी के व्यापार में अपना जीवन बेच दिया हमने ।
बदले में तो कुछ उम्मीद थी नहीं ,
फिर क्यों उसके इंतज़ार में परछाइयों से दोस्ती कर ली हमने ?
कब तक इस 'क्यों' का जवाब ढूंढेगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक ऐसे जीयेंगे हम ?
- स्वाति सिंह
क्यों अपने आने वाले कल से घबराते हैं ?
क्यों अपने सवालों के जवाब दूसरो से सुनना चाहते हैं ?
क्यों खुद से छुप कर लोगो की तलाश में निकल जाते हैं ?
इस 'क्यों' को कब तक साथ लेकर चलेंगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक उसी अंधकार में रहेंगे हम ?
हमें छोड़ कर जाना फैसला था उनका ,
क्यों उनके यादों में जीना बन गई हमारी मज़बूरी ?
सब कुछ ठीक सा था ,
फिर क्यों बना ली हमने सबसे दूरी ?
दूसरो के सपने पूरे करते करते खुद की नींद कुचल दी हमने ।
महान बनने की चाहत में खुद से नफ़रत कर ली हमने ।
क्यों किसी से मिलते ही उनसे अलग होने का सोचते है हम ?
क्यों खुद को खत्म होते देख दूसरो को जोड़ते है हम ?
कब तक इस 'क्यों' के बीच छुपे रहेंगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक आंखें बन्द रखेंगे हम ?
खुद को धोखे में रख उसका विश्वास जीत लिया हमने ।
उसके खुशी के व्यापार में अपना जीवन बेच दिया हमने ।
बदले में तो कुछ उम्मीद थी नहीं ,
फिर क्यों उसके इंतज़ार में परछाइयों से दोस्ती कर ली हमने ?
कब तक इस 'क्यों' का जवाब ढूंढेगे ?
अब कुछ ही वर्ष बचे हैं
कब तक ऐसे जीयेंगे हम ?
- स्वाति सिंह
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